शहर, गांव और १०० रूपए के समोसे | Sheher, Gaon aur 100 Rupaye Ke Samose
अभी कुछ सालों पहले ही मैं अपने ससुराल गया। रास्ते में मुझे एक हलवाई की दुकान नजर आई तो सोचा कुछ खाने को ही लेते चलूं, खाली हाथ ससुराल जाते अच्छा नहीं लगता। दुकान के सामने मोटरसाइकिल रोककर जैसे ही मैं दुकान के सामने पहुंचा, मैंने देखा एक कड़ाही में सात आठ समोसे छन रहे हैं, पास ही एक दूसरे बर्तन में 10-12 समोसे छनने के लिए इंतजार कर रहे हैं। मैंने हलवाई से पूछा समोसे कैसे दिए ? वह बोला ₹4 का एक। मुझे ऐसा लगा मानो मैंने कुछ गलत सुन लिया हो, इसलिए मैंने उससे फिर से पूछा कितने के दिए ?वह फिर से बोला ₹4के साहब।
मैंने पहले सोचा था मेरे ससुराल के घर में कुल 6 लोग हैं तो मैं 10 समोसे ले लेता हूं जिससे कि आसपास के छोटे बच्चे अगर वहां मौजूद हुए तो उन्हें भी खाने को दे सकूं। परंतु समोसों का दाम सुनकर मैं इतना आश्चर्यचकित था कि मेरे मुंह से निकला 20 दे दो।20 समोसों का ऑर्डर सुनते ही हलवाई की आंखें चमक से भर गई। उसने जोर से अपने बेटे को आवाज लगाई, "अरे पुत्तू ! जरा 20 समोसे और लगा तो। बेटा लपक के उबली हुई आलू उठा उठा कर समोसे बनाने लगा और हलवाई ने समोसे छानने के लिए करछी संभाल ली। कुछ देर में समोसे से बनकर तैयार हो गए, और हलवाई ने एक हिंदी अखबार में लपेट कर उनको पैक करके मेरे हाथों में थमा दिया। 20 समोसे के लिए मेरी जेब से एक सौ का नोट निकला। इन्हीं 20 समोसों के लिए शहर में हमें कम से कम ₹300 चुकाने पड़ते हैं, और यहां मात्र ₹90 में काम चल गया।इसके पहले की हलवाई मुझे ₹20 वापस लौटा पता मैं दुकान से बाहर निकलकर बाइक पर बैठने लगा। मैंने हलवाई को वह ₹20 उसके पास ही रख लेने का इशारा किया और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के वहां से चल दिया।
कुछ देर में मैं अपने ससुराल पहुंच गया और सभी घरवालों से मिला। फिर मैंने समोसा से भरा थैला खोल दिया। इतने सारे समोसे देखकर मेरी सासू मां दया कर पूछ ही लिया कि बेटा इतने सारे समोसे क्यों खरीद लिए। मैंने उत्तर दिया, "बस ऐसे ही घर के लिए ले आया"।सासु मां ने कहा, "अरे बेटा घर में इतने लोग कहां, चलो बाहर खेल रहे बच्चों को भी दे आती हूं।"बच्चों में समोसे बैठने के बाद भी लगभग 10 समोसे बाकी ही रह गए थे जिन्हें मेरी सासू मां आसपास के घरों कि महिलाओं को बांट आईं।
अपने ससुराल में बैठे बैठे ही मुझे यह एहसास होने लगा, के शहरों में हम ₹100 की एक आइसक्रीम खा जाया करते हैं, जिससे सिर्फ मुझे ही आनंद मिलता है, और यहां गांव में मेरे मात्र ₹100 खर्च कर देने से उस हलवाई के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई थी, मेरे ससुराल कि सभी घर वालों ने समोसों का आनंद उठाया, बाहर खेल रहे बच्चों ने समोसे खाए, उसके बाद भी इतने समोसे बच गए कि आसपास के घरों में बांट दिए गए।एक ₹100 का नोट इतने सारे चेहरों पर एक छोटी सी खुशी लेकर आ सकता है यह एहसास मुझे इसके पहले कभी भी ना हुआ था।
अब जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि गांव में अनाज का उतना मोल नहीं है जितना पैसे का है। क्योंकि गांव में अनाज तो बहुत है, परंतु जीवन की बाकी जरूरतें पूरी करने के लिए जिस धन की आवश्यकता है वह अनाज के मुकाबले बहुत कम है। इसी धन की कमी को पूरा करने के लिए गांव के मेहनतकश लोग शहरों की बेचैनी जिंदगी की तरफ भाग रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम जैसे लोग शहर की सुविधाओं से भरी परंतु सुख से कोसों दूर जिंदगी को छोड़कर गांव के भीड़-भाड़ से दूर, शुद्ध और पवित्र वातावरण की तरफ भाग रहे हैं। आज हम शहरों में चाहे जितने बड़े बन जाएं, जितना चाहे धन एकत्रित कर लें, परंतु वृद्धावस्था मैं जिस आसीम शांति की हमें आवश्यकता होगी वह हमें केवल कच्ची सड़कों, आम के बागों, नहरों-तालाबों, गाय बैलों और खेतों के पास बने कच्चे घर में ही प्राप्त हो सकती है। किसी ने सही कहा है, "मां और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर हैं।"
अभी कुछ सालों पहले ही मैं अपने ससुराल गया। रास्ते में मुझे एक हलवाई की दुकान नजर आई तो सोचा कुछ खाने को ही लेते चलूं, खाली हाथ ससुराल जाते अच्छा नहीं लगता। दुकान के सामने मोटरसाइकिल रोककर जैसे ही मैं दुकान के सामने पहुंचा, मैंने देखा एक कड़ाही में सात आठ समोसे छन रहे हैं, पास ही एक दूसरे बर्तन में 10-12 समोसे छनने के लिए इंतजार कर रहे हैं। मैंने हलवाई से पूछा समोसे कैसे दिए ? वह बोला ₹4 का एक। मुझे ऐसा लगा मानो मैंने कुछ गलत सुन लिया हो, इसलिए मैंने उससे फिर से पूछा कितने के दिए ?
वह फिर से बोला ₹4के साहब।
मैंने पहले सोचा था मेरे ससुराल के घर में कुल 6 लोग हैं तो मैं 10 समोसे ले लेता हूं जिससे कि आसपास के छोटे बच्चे अगर वहां मौजूद हुए तो उन्हें भी खाने को दे सकूं। परंतु समोसों का दाम सुनकर मैं इतना आश्चर्यचकित था कि मेरे मुंह से निकला 20 दे दो।
20 समोसों का ऑर्डर सुनते ही हलवाई की आंखें चमक से भर गई। उसने जोर से अपने बेटे को आवाज लगाई, "अरे पुत्तू ! जरा 20 समोसे और लगा तो। बेटा लपक के उबली हुई आलू उठा उठा कर समोसे बनाने लगा और हलवाई ने समोसे छानने के लिए करछी संभाल ली।
इसके पहले की हलवाई मुझे ₹20 वापस लौटा पता मैं दुकान से बाहर निकलकर बाइक पर बैठने लगा। मैंने हलवाई को वह ₹20 उसके पास ही रख लेने का इशारा किया और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के वहां से चल दिया।
कुछ देर में मैं अपने ससुराल पहुंच गया और सभी घरवालों से मिला। फिर मैंने समोसा से भरा थैला खोल दिया। इतने सारे समोसे देखकर मेरी सासू मां दया कर पूछ ही लिया कि बेटा इतने सारे समोसे क्यों खरीद लिए। मैंने उत्तर दिया, "बस ऐसे ही घर के लिए ले आया"।
सासु मां ने कहा, "अरे बेटा घर में इतने लोग कहां, चलो बाहर खेल रहे बच्चों को भी दे आती हूं।"
बच्चों में समोसे बैठने के बाद भी लगभग 10 समोसे बाकी ही रह गए थे जिन्हें मेरी सासू मां आसपास के घरों कि महिलाओं को बांट आईं।
अपने ससुराल में बैठे बैठे ही मुझे यह एहसास होने लगा, के शहरों में हम ₹100 की एक आइसक्रीम खा जाया करते हैं, जिससे सिर्फ मुझे ही आनंद मिलता है, और यहां गांव में मेरे मात्र ₹100 खर्च कर देने से उस हलवाई के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई थी, मेरे ससुराल कि सभी घर वालों ने समोसों का आनंद उठाया, बाहर खेल रहे बच्चों ने समोसे खाए, उसके बाद भी इतने समोसे बच गए कि आसपास के घरों में बांट दिए गए।
एक ₹100 का नोट इतने सारे चेहरों पर एक छोटी सी खुशी लेकर आ सकता है यह एहसास मुझे इसके पहले कभी भी ना हुआ था।
अब जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि गांव में अनाज का उतना मोल नहीं है जितना पैसे का है। क्योंकि गांव में अनाज तो बहुत है, परंतु जीवन की बाकी जरूरतें पूरी करने के लिए जिस धन की आवश्यकता है वह अनाज के मुकाबले बहुत कम है।
इसी धन की कमी को पूरा करने के लिए गांव के मेहनतकश लोग शहरों की बेचैनी जिंदगी की तरफ भाग रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम जैसे लोग शहर की सुविधाओं से भरी परंतु सुख से कोसों दूर जिंदगी को छोड़कर गांव के भीड़-भाड़ से दूर, शुद्ध और पवित्र वातावरण की तरफ भाग रहे हैं।
This proves that simple living can also have the maximum level of inner happiness.
ReplyDeleteSuperb,,,
Dil ko choo liya sir ji
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार।
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