Sunday, January 19, 2025

बचपन के दिन और रेडियो का साथ | Bachpan Ke Din Aue Radio Ka Sath

बचपन के दिन और रेडियो का साथ | Bachpan Ke Din Aue Radio Ka Sath

हम में से जिन लोगों का जन्म 90 के दशक या उस से पहले हुआ है, रेडियो जरूर सुना होगा। और सुना भी क्यों ना हो, पहले घर में रेडियो ही तो हुआ करते थे क्योंकि टीवी खरीदना सबके बस की बात नहीं थी। वैसे तो उन दिनों बहुत सारे रेडियो स्टेशन हुआ करते थे, मगर विविध भारती की बात ही कुछ और थी। विविध भारती हमारे देश का एक बहुत पुराना रेडियो स्टेशन है जो आज भी अपने पुराने स्वरूप को बरकरार रखे हुए हैं।

भाई यह विविध भारती पर प्रसारित होने वाले कुछ खास कार्यक्रमों कोई याद करें तथा आपने बचपन की यादों को ताजा करें।

१. वंदनवार - सुबह-सुबह बंदनवार कार्यक्रम प्रसारित होता था जिसमें भक्ति गीत सुनाए जाते थे।

२. बंदनवार के बाद सुबह 6:30 बजे से 8:45 बजे तक फ्री में गीत सुनाए जाते थे।

३. 8:45 से 9:00 तक समाचार सुनाए जाते थे। इसके बाद अपना फिल्मी गाने सुनाए चाहते थ।

४. सदाबहार नगमे - दोपहर को सदाबहार नगमे में एक से एक सुपरहिट गीत सुनाए जाते थे।

५. हेलो फरमाइश - हेलो फरमाइश बहुत ही मनोरंजक कार्यक्रम था। हेलो फरमाइश कार्यक्रम में देशभर से श्रोता कॉल करके अपने पसंदीदा गाने सुना करते थे।

६. हवा महल - रात को 8:00 बजे हवामहल कार्यक्रम प्रसारित होता था जिसमें छोटी-छोटी हास्य नाटिकाएं सुनाई जाती थी। एक हास्य नाटिका जिसका नाम उदयपुर की ट्रेन था बहुत ही मनोरंजक थी।

७. जयमाला - शाम 7:00 बजे के आसपास जयमाला नाम का कार्यक्रम प्रसारित होता था जो कि देश के सैनिकों के पसंदीदा गानों पर आधारित है। जब कार्यक्रम विशेष रूप से सैनिकों के लिए ही समर्पित था।

८. रात को 8:45 बजे पुनः समाचार प्रसारित होते थे।

९. 9:00 बजे रात को पुनः फिल्मी गीत सुनाए जाते थे।

१०. उजाले उनकी यादों के - रात को 9:30 या 10:00 बजे के आसपास उजाले उनकी यादों के नामक कार्यक्रम प्रसारित होता था। इस कार्यक्रम में फिल्म जगत से जुड़े गीतकार संगीतकार इत्यादि अपनी फिल्म बनने के दौरान हुए यादगार लम्हों को साझा करते थे।

एक और कार्यक्रम आज कल शाम को आता है जिसका नाम है नाट्य तरंग। नाट्य तरंग को सुनता हूँ तोह ऐसा लगता है मनो कोई पुरानी मैगज़ीन पढ़ रहा हूँ। बहुत ही अच्छा अनुभव रहता है।

कुल मिलाकर मैं आपको यही कह सकता हूं की रेडियो उन दिनों संपूर्ण मनोरंजन का साधन हुआ करता था।

रेडियो से जुड़ी बचपन की याद -

आज से लगभग 20 साल पुरानी बात है जब मैं गर्मियों की छुट्टियों में अपने गांव गया हुआ था। मेरे घर में एक छोटा सा रेडियो था, मैंने वह रेडियो उठाया और छत के कमरे में खटिया पर लेट गया और रेडियो ऑन कर दिया। और Tuner को घुमा कर रेडियो स्टेशन ढूंढने लगा। Medium Wave पर मुझे एक स्टेशन मिला। शायद वह कोई लोकल रेडियो स्टेशन था क्योंकि Medium Wave पर केवल एक प्रदेश के ही रेडियो स्टेशन का सिग्नल पकड़ता था। हमारे गांव में ऐसा नहीं आता था क्योंकि एफएम चैनल इलाहाबाद से प्रसारित होता था जो कि हमारे गांव से लगभग 70 - 80 किलोमीटर की दूरी पर है, इस कारण से हम मीडियम वेव पर लोकल रेडियो स्टेशन या फिर शार्ट वेव पर विविध भारती सुना करते थे।

खैर उस लोकल रेडियो स्टेशन पर कुछ लोकगीत प्रसारित हो रहे थे। उस कार्यक्रम की संचालिका ने अगले आने वाले लोकगीत का थोड़ा सा ब्यौर दिया और उसके बाद वह लोकगीत चल पड़ा। वह लोकगीत इतना साधारण और इतना मधुर था कि बस क्या ही बताऊं। गाना कोई महिला गा रही थी और बैकग्राउंड म्यूजिक में था ढोलक, झाल और केवल बांसुरी। मैं बहुत छोटा था तो इसीलिए मुझे वह गाना ठीक से समझ में तो नहीं आया मगर उसका एक अंश जो बार-बार रिपीट हो रहा थी वह मुझे आज भी याद है। वह अंश था "अचरा धै के रोवैं"। इसका मतलब होता है आंचल पकड़ के रोना।

शायद वह कोई विदाई का गीत था जिसमें कोई लड़की विदा होने के पहले अपना आंचल पकड़ कर रो रही हैै और यह गा रही है। खैर अब तो इस तरह के गाने सुनने को ही नहीं मिलते क्योंकि ना तो लोकगीत गाने वाले बचे हैं, ना बजाने वाले और ना ही ऐसे रेडियो स्टेशन बचे हैं जो इस प्रकार के गाने प्रसारित करें। खैर रेडियो स्टेशन की भी गलती नहीं है क्योंकि रेडियो का ही अस्तित्व खत्म होने वाला है।


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