यूपी के ननिहाल की भावुक यात्रा | UP Ke Nanihaal Ki Bhavuk Yatra
कुछ साल पहले मैं अपने एक दूर के रिश्तेदार की शादी के लिए गाँव गया हुआ था। विवाह समारोह में पहुंचा तो देखा सभी लोग यहां-वहाँ शादी की तयारी में लगे हुए थे.
कुछ रिश्तेदारों से मिलने के बाद हम गाँव के कच्चे घर के एक कोने में बैठ गए जिससे की शादी की तैयारी कर रहे लोगो को आने जाने में किसी प्रकार की परेशानी न हो.
थोड़ी देर तक वहां बैठने के बाद मेरी चचेरी बहन ने कहा, "हम यहां काफी देर से खली बैठे हैं, क्यों न हम सब लोग मेरी नानी से मिल आएं? वैसे भी यहां से नज़दीक ही हैं उनका घर".
उन्होंने मुझसे भी पूछा की क्या मैं भी उनके साथ जाना चाहता हूँ. मैंने हाँ में सिरहिला दिया और चलने को तैयार हो गया.
बस फिर क्या था हम अपनी कार में बैठे और निकल पड़े 'नानी के गाँव' की तरफ. घर से निकले ही थे की मौसम बारिश का सा हो गया. करीब २० मिनट बाद हम नानी के गांव पहुंच गए और तब तक हल्की हल्की बारिश होना शुरू हो गयी थी.
हमने कार रोकी और गाडी से बहार निकले.
तब तक बारिश तेज हो गई थी। हम सभी ने सोचा कि बारिश से बचते हुए जल्दी नानी जी के घर में दाखिल हो जाएं। मैं गाड़ी से उतरा और घर का गेट खोला। तभी मेरी बहन भी गाड़ी से बाहर निकलकर घर में दाखिल हो गए। जैसे ही मैं घर की चौखट में दाखिल हुआ, मैंने देखा चौखट पार करते ही 2 मीटर की दूरी पर खुला आंगन था। बारिश के कारण पूरा आंगन भीग चुका था ।
तभी मैंने देखा अंदर से एक वृद्ध महिला धीरे धीरे हमारी तरफ चली आ रहीं थीं।
मेरी बहन ने उन्हें देख कर कहा, "नमस्ते नानी जी". अब मुझे ज्ञात हो चुका था की यही मेरी दीदी की नानी जी हैं।
मैंने नानी जी के पैर छुए और फिर हम सब वहीं पर बिछी हुई दो खटिया पर बैठ गए। नानी जी हम सब को वहीं बिठाकर रसोई की तरफ जाने लगीं। लगभग दो-तीन मिनट के बाद नानी जी हाथ में एक प्लेट नमकीन और चार गिलास लेकर बाहर आईं। वह फिर से भीतर जाकर पानी से भरा हुआ जग भी लेकर आईं।
हमें अहसास हुआ कि हम नानी कल काम बढ़ाकर उनको बेकार में ही परेशान कर रहे हैं तो हमने उन्हें भी साथ बैठने को कहा। तभी मेरी नजर नानी जी के पैरों पर पड़ी। इतनी ठंड, और ऊपर से बारिश, उस पर भी नानी जी बिना चप्पलों के नंगे पैर घर के कामों में लगी हुई थी। और ऊपर से हमने भी आकर उनका काम बढ़ा दिया था।
नानी जी की 5 बेटियां थी और सब की शादी हो चुकी थी।
तभी मैंने पूछ लिया कि नाना जी कहां है ?
नानी ने जवाब दिया, "यहीं 2 किलोमीटर दूर एक नए गैस वितरण एजेंसी का उद्घाटन है, वहीं गए हैं", यह कहकर नानी चुप हो गईं।
तभी नानी जी की नजर उस उस प्लेट पर पड़ी जिसमें नमकीन थी। नानी जी को जब एहसास हुआ कि नमकीन खत्म होने वाली है तो वह उठीं और फिर से रसोई की तरफ नंगे पैरों से ही चली गईं, और कुछ देर के बाद एक और प्लेट नमकीन ले आईं।
मैं मन ही मन सोच रहा था कि इस उम्र में नानी जी की सेवा करने वाला कोई नहीं है। सारी बेटियों की शादी करके उन्होंने उनको विदा कर दिया था। अब नानी जी किस तरह अपना तथा नाना जी का ध्यान रखती होंगी। अभी तो फिर भी उनके हाथ पर चल रहे थे, पर कुछ और सालों बाद क्या होगा। बस इसके आगे सोचने की मेरी हिम्मत ना हुई। मुझे मन ही मन दुख हो रहा था की हमने बेवजह अचानक यहां आ कर नानी जी का काम बढ़ा दिया।
तभी थोड़ी देर में नाना जी भी उद्घाटन से लौट आए। घर में दाखिल होते ही नाना जी हम सब को देख कर बहुत खुश हुए। अब नाना जी और नानी जी दोनों के चेहरे पर बहुत खुशी थी।
बहुत ठंड थी इसलिए नाना जी ने नानी से कहा जाओ ज़रा सबके लिए थोड़ी चाय बना लाओ ।
यह सुनते ही मुझे लगा कि अब नानी जी को हमें और तकलीफ नहीं देनी चाहिए। तभी मेरे जीजू ने दीदी से कहा जाओ तुम जाकर चाय बना लाओ नानी जी को यहीं बैठने दो।
तभी नाना जी नानी से बोल पड़े, "जाओ जाकर कम से कम रसोई में दूध, चीनी, चाय की पत्ती कहां रखी है यही दिखा दो।
नानी दीदी के साथ रसोई में चली गईं और हम लोग नाना जी से बातें करने लगे। बाहर बारिश कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
जैसे-जैसे बारिश बढ़ती मैं यही सोचता के इस उम्र में नाना नानी जी को रोजमर्रा की जिंदगी में कितनी तकलीफें उठाने पढ़ती होंगी।
पहले के समय की बात और थी, जब गांव में बहुत सारे कुमार लड़के हुआ करते थे और अगर किसी घर में कोई सेवा करने वाला ना हो तो आस पड़ोस के लड़के वृद्ध दंपत्ति की सेवा में कोई कमी ना छोड़ते थे, पर अब समय बदल चुका है, ऐसा नहीं कि कोई सेवा नहीं करना चाहता, बल्कि गांव में लड़के रही नहीं गए हैं, जो है वह बहुत छोटे हैं। लड़के जैसे ही १७-१८ वर्ष की आयु के होते हैं, वे बेहतर भविष्य की तलाश में शहरों की तरफ मुड़ जाते हैं, और गांव में रह जाते हैं बस छोटे-छोटे बच्चे और वृद्ध दंपत्ति।
तभी थोड़ी देर के बाद नानी और दीदी चाय बनाकर ले आए। हम सभी आपस में बैठकर एक दूसरे से चाय पर बात करते रहे।
तभी एकाएक ना जाने नाना जी को क्या एहसास हुआ कि वे उठे औेर अपने कमरे में जाकर एक कटोरी भर किशमिश ले आए और हमें खाने को दिया।
शायद नाना जी यही सोच रहे थे की मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी ना रह जाए इसीलिए जो भी उनसे बन पड़ रहा था, हमारे सामने लाकर प्रेम पूर्वक रखे जा रहे थे।
आपस में बातें करते हुए लगभग एक घंटा गुजर चुका था। अब हमारे जाने का समय आ गया था क्योंकि हम दूसरे गांव के विवाह का कार्यक्रम छोड़ कर यहां आ गए थे। अतः हमने नाना जी से विदा लेने का आग्रह किया। नाना तथा नानी जी हमें और कुछ देर रोकना चाहते थे परंतु हमें दूसरे गांव के विवाह के कार्यक्रम में भी शामिल होना था इसलिए और देर तक वहां रुक पाना संभव ना था।
नानी जी के घर से बाहर निकलते ही हमने देखा कि बारिश बंद हो चुकी है। हमने सोचा जाते-जाते क्यों ना कुछ फोटो खींच लिया जाए। इसलिए हमने नाना और नानी जी को बीच में रखा और उनके अगल-बगल खड़े होकर कुछ फोटो लिए। इसके अलावा हमें नाना और नानी जी का उनको एक साथ खड़े करके भी फोटो लिया। और जैसे ही हमने नाना-नानी जी का एक साथ वाला फ़ोटो उनको दिखाया, यह देखते ही नाना-नानी जी के चेहरे पर बहुत ही प्यारी मुस्कान आ गई। उन दोनों के चेहरे पर वह मुस्कान देखकर मुझे जिस खुशी की अनुभूति हुई वह जहां शब्दों में वर्णित करना सरल नहीं।
नाना-नानी जी को नमस्ते कहने के बाद हम जैसे ही गाड़ी के तरफ बढ़े, नानी जी ने कुछ पैसे हम सभी के हाथों में थमाने की कोशिश की। (उत्तर प्रदेश में मेहमानों को घर के बड़े विदाई के रूप में प्रेम पूर्वक हमेशा कुछ पैसे दिया करते हैं।)
मैंने हंसते हुए नानी जी से पैसे लेने से मना किया परंतु उन्होंने जबरदस्ती मेरी जेब में पैसे डाल दिए।
अब हम सब गाड़ी में बैठने के लिए आगे बढ़े। गाड़ी में बैठने के बाद, मैंने नाना-नानी की तरफ देखा, अब उन दोनों के चेहरे के भाव बदले हुए थे। उनके चेहरे पर खुशी और दुख दोनों ही भाव मौजूद थे। खुशी इसलिए क्योंकि शायद बहुत समय के बाद उनसे हम मिलने आए थे और दुख इसलिए क्योंकि अब हम वापस जा रहे थे।
तभी मुझे एहसास हुआ की नानी की आंखें भर आईं है और हमारी गाड़ी चल पड़ी। परंतु मैं नानी के चेहरे से अपनी नजरें हटा ना सका, गाड़ी चलती रही और मैं अंदर से नानी की तरफ हाथ जोड़े रहा।
कुछ ही समय में हम गांव से बाहर निकल गए। पर नाना और नानी जी का चेहरा मेरे सामने से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था।
अभी कुछ देर पहले नानी के घर में एक अजीब सा सन्नाटा था, और हमारा उनके घर में कुछ समय के लिए मेहमान बनकर जाने के बाद सन्नाटा दूर हो गया था। वही सन्नाटा हमारे वापस चले जाने के बाद फिर से उनके घर में पसर गया होगा !
अब मैं गांव से वापस शहर आ चुका हूं, और मेरा अक्सर मन होता है की बस अभी वहां जाकर नाना-नानी से एक पल को मिल आऊं और भले ही कुछ पलों के लिए सही पर उस अजीब से सन्नाटे को उनके घर से मिटा दूं।
आज भी नाना-नानी जी के गांव की उस यात्रा को याद करके मेरी आंखें भर आती हैं !
- पंकज प्रतापगढ़वी
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