Sunday, January 19, 2025

वो बचपन वाली होली | Woh 90s Ki Bachpan Wali Holi

 

वो बचपन वाली होली  | Woh 90s Ki Bachpan Wali Holi

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Photo by Varun Verma on Unsplash  


गब्बर के पास तो कैलेंडर नहीं था इसलिए उसे अपने साथी डाकुओं से होली की तारीख पूछनी पड़ी। आपके घर में कैलेंडर जरूर होगा पर क्या आपको पता है होली कब है ?

बचपन को याद कीजिए

अब ज़रा अपने बचपन को याद कीजिए, जब नया साल आते ही घर में नया कैलेंडर आता था। कैलेंडर का पहला पन्ना आमतौर पर ज्यादा रंगीन और बढ़िया क्वालिटी का होता था, उस पर बाकी पन्नों के मुकाबले चमक भी ज्यादा होती थी। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी तरह आप भी अभी बचपन में नए साल पर लाए हुए कैलेंडर के सभी पन्नों को बड़े उत्साह के साथ देखते होंगे। मैं भी जनवरी से लेकर दिसंबर तक हर महीने के पन्नों को ध्यान से देखता था। दरअसल मुझे यह जानना होता था की कौन-कौन से त्योहार किस किस दिन पड़ रहे हैं ? कहीं कोई त्यौहार रविवार को तो नहीं पड़ रहा ? और सबसे जरूरी - होली कब है ?

बाजारों में होली आने के 15-20 दिन पहले से ही तरह-तरह की पिचकारियां, पानी के गुब्बारे, रंग और गुलाल बिकने लगते थे। और जैसे-जैसे होली का त्यौहार नजदीक आता था, वैसे-वैसे इन चीजों की बिक्री भी तेज होने लगती थी।

हमारे साथ के ही कुछ बच्चे, जिनको आसानी से घर से जेब खर्च मिल जाया करता था होली के एक हफ्ते पहले ही रंग खरीद कर एक दूसरे पर डाल कर होली मनाना शुरू कर देते थे। हमें तो गैर जरूरी चीजें खरीदवाने के लिए पहले घरवालों से मार खानी पड़ती थी।

होली से एक दिन पहले, जो कि होलिका दहन का दिन होता है, उस दिन हम अपने मोहल्ले के बड़े-बड़े लड़कों तथा अंकल लोगों को मोहल्ले के खुले इलाके में होलिका बनाते हुए देखा करते थे। कई बार मोहल्ले के बड़े लोगों द्वारा बनाए गए होलिका को देखकर हम बच्चे भी अपने लिए अलग से एक छोटी सी होलिका बनाने की कोशिश किया करते‌ और इसके लिए सब आसपास की जंगल झाड़ियों से सूखी लकड़ियां इकट्ठा करके ले आते, कुछ बच्चे घरों से पुराने गत्ते तथा कागज ले आते और सब लोग मिलकर बच्चों वाली एक छोटी सी होलीका बना लिया करते।


होलिका दहन

शाम को पूरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा होते, महिलाएं पहले पूजा करतीं, फिर बाद में जब होलिका दहन होता तो सब लोग उसे बहुत ही चाव से देखा करते। कई बार ऐसा भी होता कि हर मोहल्ले के लोग अपने अपने मोहल्ले में एक से एक ऊंची-ऊंची होलिका बनाते ताकि रात को जलते वक्त उनकी होलिका दूसरे मोहल्ले की होलिका से ऊंची दिखाई दे। इतने लोग इकट्ठा होते तो थोड़ी हंसी ठिठोली भी हो जाया करती। कुछ लोग अपने घरों से कुछ मीठा या नमकीन भी ले आया करते। बस इसी प्रकार सभी लोग होलिका दहन की संध्या का आनंद उठाया करते। बहुत ही सुन्दर माहौल हुआ करता था। आज कल इस प्रकार के आयोजनों में बहुत कमी आ गई है। लोगों में आपसी प्रेम तथा मेल-मिलाप बहुत कम हो गया है।

अब ये होलिका दहन की शाम तो बहुत ही आनंदमय तरीके से गुजर जाया करती थी मगर होली से पहले की रात को मजाल है कि हमें नींद आ जाए।  हम बच्चे तो अगले दिन रंगों से होली खेलने के तरह तरह के विचारों की खुशी के मारे ही सो नहीं पाते थे। कल कौन-कौन से रंग मिक्स करने हैं, किस-किस को काला गाढ़ा रंग लगाना है, किस को केवल गुलाल लगा के छोड़ देना है, किस-किस को पिचकारी से भिगोना है, किसको पानी वाले गुब्बारे मारने हैं और किसके ऊपर पूरी बाल्टी ही भर के उलट देनी है.... बस पूरी रात यही सब प्लानिंग करते हुए गुज़र जाती थी और अगर गलती से आंख लग भी गई तो बस सपने में भी होली का खेल शुरू हो जाता।


होली खेलने का रोमांचक दिन

होली खेलने का दिन बहुत ही रोमांचक हुआ करता था। मुझे नहीं याद कि मैं कभी होली खेलने के पहले नहाया हूं। बाद में तो रगड़ रगड़ के नहाना ही पड़ता था। हर त्योहार पर लोग नये नये कपड़े पहनते हैं, एक होली ही ऐसा त्योहार है जिस दिन नये कपड़े पहनने का रिस्क शायद ही किसी ने लिया हो। सब बच्चे अपने अपने घरों से पुराने कपड़े पहन कर, अपनी पिचकारियां लेकर निकलते। कुछ बच्चों के पास जहां साधारण पिचकारियां होतीं, तो वहीं कुछ के पास बड़े टैंक वाली, जिनमें बार-बार पानी भरने का झंझट ही नहीं। एक बार टैंक भरो और बस जिसको चाहे भिगो भिगो कर रंग में सराबोर कर दो। कुछ बच्चे तो केवल पानी के गुब्बारे ही भर भर कर निकलते और जो सामने मिला उसपर बम की तरह गुब्बारों की बौछार ही कर देते। कुछ बच्चे आपस में टीमें बनाकर एक दूसरे की टीम के साथ युद्ध जैसी होली खेलते जिसमें हथियार होते थे पिचकारी का पानी और पानी के गुब्बारे। वाकई बहुत ही मजेदार त्योहार हुआ करता था होली।

जैसे जैसे हम बड़े होते गए, होली का मज़ा कम होता गया। बोर्ड की परीक्षाएं भी मार्च के महीने में ही होती थी जैसे आज भी होती हैं, बस यही कारण है कि बड़े होने के बाद होली के प्रति वह चाव कुछ कम हो गया था और वह त्योहार जिसका हम पूरे साल इंतजार किया करते‌ थे केवल एक दूसरे को गुलाल लगा कर "हैप्पी होली" कहने तक ही सिमट कर रह गया।


आज मैं देखता हूं, न तो हमें नया कैलेंडर खोल कर त्योहारों की लिस्ट देखने की फुर्सत है और नहीं त्योहार मनाने की पहले जैसी इच्छा। इसका बहुत बड़ा कारण लोगों की आजकल की व्यस्त दिनचर्या और भागमभाग से भरा जीवन है। ये बड़े बड़े होली-दिवाली जैसे त्यौहार जो कि घर-परिवार की खुशियों के प्रतीक थे आज बस एक छुट्टी का दिन मात्र बन कर रह गए हैं। कुछ तो ये एक अजीब सी विचारधारा का भी दोष है जिसने हमारे त्यौहारों को पानी की बरबादी तथा प्रदूषण से जोड़ दिया है और हम लोगों ने बिना इन बातों का विरोध किए इन्हें मान भी लिया है।

खैर, आज हम धीरे धीरे त्योहारो के प्रति लोगों का लगाव कम होते हुए देख रहे हैं। पिछले कुछ सालों में होली में खराब क्वालिटी के रंग भी बाजार में आए जिनके कारण लोगों को त्वचा संबंधी परेशानियां भी हुई। और हो भी क्यों न क्योंकि अब तो प्राकृतिक रंगों की कोई बात ही नहीं करता। पहले लोग होली से पहले ही तरह तरह के फूल तथा पत्तियों से रंग बनाया करते थे। रंग बनाने के लिए सबसे ज्यादा "टेसू के फूलों" का उपयोग होता था।

दुनिया भर के रंग खेलने के बाद शाम को सभी लोग एक दूसरे के घरों में अपने अपने घर की बनी मिठाइयां बांट कर होली के त्योहार का समापन किया करते थे।

आज न वह होलिका दहन की शाम है, न वह टेसू के फूलों के रंग, न वह गुलाल है और न वो घर में बनी गुजिया जैसी मिठाइयां, न तो मधुर होली के गाने हैं और न गाने वाले होली के रसिया। अब रह गया है तो बस व्यस्त जीवन और प्राइवेसी के नाम पर लोगों से न मिलने का बहाना।

आज की दुनिया की बंद कमरों की होली

आज की दुनिया बस अपने बंद कमरों में "रंग बरसे भीगे चुनर वाली और जोगीरा सारारारारारा" गाना सुनकर और अपने सबसे अज़ीज़ मित्र यानी कि अपने मोबाइल फोन से एक "हैप्पी होली" का संदेश भेजकर ही फगुआ मना लेती है।


आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। कृपया हमें अपनी राय दें और इस लेख को अपने मित्रों को भी शेयर करें। हमारी तरफ से भी आप सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

चित्र स्रोत : pexel.com तथा उनके योगदानकर्ता।


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