टेलेफोन बूथ न जाने कहाँ लुप्त हो गए | Telephone Booth Na Jaane Kahaan Lupt Ho Gaye

अगर आपका जन्म भी अस्सी या नब्बे के दशक में हुआ है तो आपको आज से लगभग 20 साल पहले हर बड़ी-छोटी बाजार में टेलीफोन बूथ या पीसीओ देखने को जरूर मिले होंगे। टेलीफोन बूथ अक्सर चमकीले पीले रंग के हुआ करते थे और इनमें काले या लाल रंग से बड़ा बड़ा एसटीडी-आईएसडी-पीसीओ (STD ISD PCO) लिखा हुआ पाया जाता था।
यानी कि आलम यह था कि आप सैकड़ों मीटर दूर से ही देखकर पहचान सकते थे कि यहां पर एक टेलीफोन बूथ है।
उन दिनों किसी के घर पर टेलीफोन होना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। आउटगोइंग के तो पैसे लगते ही थे साथ-साथ इनकमिंग के पैसे भी लगा करते थे।
उन दिनों टेलीफोन बूथ पर अच्छी खासी भीड़ हुआ करती थी, लोगों को अपने रिश्तेदारों से बात करने का एक अच्छा साधन जो मिल गया था।
मुझे याद है सन् 1999 या 2000 के आसपास अलग-अलग समय पर फोन पर बात करने के अलग अलग पैसे चार्ज किए जाते थे। उदाहरण के लिए सुबह 4:00 बजे से लेकर 6:00 बजे तक टेलीफोन पर बात करने के लिए आधा पैसा ही लगा करता था यानी कि बिल पर 50 पर्सेंट की छूट मिला करते थी। उसी प्रकार रात को भी शायद 9:30 या 10:00 बजे के बाद से कॉल रेट कम हो जाया करते थे। शायद ऐसा इसलिए हुआ करता था, क्योंकि पूरे दिन भर कॉल की संख्या बहुत ज्यादा हुआ करती थी और रातों को कम।
खैर उन दिनों लोगों ने अपने-अपने दूर बैठे प्रिय जनों से बात करने का रूटीन बनाया हुआ था। जैसे कि दूर के रिश्तेदारों को 15 दिन में एक बार फ़ोन करना. बहुत दूर के रिश्तेदारों को महीने में एक बार फोन करना।
शायद ही कोई ऐसा रहा हो जो अपने घर वालों को हर हफ्ते फोन करता हो क्योंकि उस समय के कॉल रेट्स उस समय की कमाई के हिसाब से बहुत ज्यादा महंगे महसूस होते थे।
मगर आप कुछ भी कहे, शायद आपको याद होगा कि अपने प्रिय जनों से 15 दिन या 1 महीने के बाद वह दो 4 मिनट की कॉल जो आप टेलीफोन बूथ से किया करते थे बहुत यादगार हुआ करती थी।
धीरे धीरे तकनीक का विकास होता गया और कॉल रेट थोड़े सस्ते हो गए। देखते ही देखते मोबाइल फोन का चलन बढ़ने लगा। तभी सरकार ने घोषणा की कि अब से टेलीफोन पर इनकमिंग के पैसे नहीं लगा करेंगे, यानी कि इनकमिंग निशुल्क हो जाएगी। बस फिर क्या था यह खबर सुनते ही बहुत सारे लोगों ने अपने घरों में लैंडलाइन तथा मोबाइल फोन के कनेक्शन से ले लिए। हालांकि मुझे याद है सन 2000 से 2005 तक एसटीडी कॉल करने के लिए प्रति मिनट ₹4 से ₹5 लगा करते थे।
आप खुद ही अंदाजा लगाइए उस जमाने में हर मिनट के ₹4 से ₹5 लगना कितनी बड़ी बात थी. आखिर उस समय ₹5 की बहुत कीमत हुआ करती थी।
अपने-अपने टेलीफोन बूथ के सामने लगी भीड़ को देखकर दुकानदार बहुत खुश हुआ करते थे। कई दुकानदारों की अपने ग्राहकों से बहुत अच्छी पहचान हो गई थी क्योंकि वह अक्सर उनके टेलीफोन बूथ पर अपने रिश्तेदारों से बात करने के लिए आया करते थे।
टेलीफोन बूथ पर जाकर अपने रिश्तेदारों से फोन पर बात करना आजकल के वीकेंड पर फिल्म देखने जाने से कम ना था। इसके लिए अलग से तैयारी की जाती थी, जी हां, बकायदा तैयारी की जाती थी कि अगले हफ्ते जब बात करने जाना है तो क्या-क्या बातें करनी है ? कितने बजे जाना है ? किस किस को लेकर जाना है?
मुझे पूरा विश्वास है कि आप ने भी इसी प्रकार का जीवन जिया होगा। अब तो आप मान गए होंगे कि टेलीफोन बूथ पर जाकर रिश्तेदारों से बात करना, सच में किसी इवेंट से कम न था।
मोबाइल फ़ोन का दौर
फिर आया मोबाइल फोन का दौर और धीरे-धीरे मोबाइल फोन सबके घरों में आ गया। कितने घरों से लैंडलाइन को रुखसत करके मोबाइल फोन से नाता जोड़ लिया गया। धीरे-धीरे कॉल रेट भी सस्ते होते चले गए और अब तो आपको पता ही है कि मोबाइल फोन किस प्रकार से हम सबके जीवन में अपना घर कर चुका है। अब तो यदि मोबाइल फोन ना हो तब तो किसी का काम है ना चले।
खैर, मेरा मकसद आज आपको आपके और हमारे पुराने दिनों की याद दिलाने का था। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप को यह लेख अच्छा लगा होगा.
(Photo by Antoine Barrès on Unsplash, Photo by Brunno Tozzo on Unsplash )
No comments:
Post a Comment